“कसमें वादे प्यार वफ़ा सब, बाते है बातों का क्या,
कोई किसी का नहीं ये झूठे, नाते है नातो का क्या”
ये गीत पहली बार में किसी को भी नकारात्मक प्रवृत्ति का प्रतीत हो सकता है. परन्तु अगर विशिष्ट परिपेक्ष्य में देखा जाये तो ये काफी हद तक सच भी है. ऐसे ही एक परिपेक्ष्य मेरे सामने बैठे जलपान कर रहे है. इन शख्स को “रिश्तेदार” कहा जाता है. रिश्तेदार शब्द मूलतः तो निकट सम्बन्ध दर्शाता है परन्तु इसका एक छुपा हुआ अर्थ भी है. रिश्तेदार का बोझ सहने की सामाजिक मजबूरियां, निकटता का स्वांग जो हम जीवन भर करते है और अपनी आगे की पीढियों को विरासत में देते है. रिश्तेदार का घर में प्रवेश हमें अभिनय से लेकर कूटनीति तक सबमे माहिर बना देता है. “किचन पॉलिटिक्स” घर में पड़ी वो दरार है जिसकी मरम्मत करने में किसी की रूचि नहीं, सबने उसे इस तरह सजा संवार दिया है की ऊपर से लगता है की दरार है ही नहीं. हम बोलते तो है- “आईये आईये, आप तो कभी आते ही नहीं” पर शायद ही किसी का सच में ऐसा आशय होता है. बच्चो को तो जल्दी जाने वाले रिश्तेदार ही पसंद है और इसके कई फायदे भी है. पहले तो बिस्कुट, नमकीन, पकोड़े और लज़ीज़ पकवान का लोभ जो आमतोर पर इन्हें नसीब नहीं होते, मेहमान जल्दी जाये तो वो इसपर टूट पड़े. दूसरे, कई रिश्तेदार जाते जाते मिठाई या टॉफी के नाम पर कुछ न कुछ थमा ही जाते है. इस प्रलोभन के साथ एक चिंता भी छुपी हुई है. रिश्तेदारों के आने पर आपका व्यव्हार रिश्तेदार को प्रभावित करने के लिए होता है. रिश्तेदार ज्यादा समय रुक जाये तो स्वांग करना मुश्किल हो जाता है, बच्चो के लिए…. बड़ो के लिए नहीं. स्वांग कर पाने की काबिलियत एक तरीके से आपके बड़े होने की निशानी है.
मेरे घर के अन्दर रिश्तेदारों का आना किसी महाभारत से कम नहीं. रिश्तेदारों के आने से पहले और रिश्तेदारों के जाने के बाद घर का माहौल क्या होता है अगर ये बात रिश्तेदार जान जाये तो कितने परिवार टूटने से बच जाये. वो सालो पुरानी बाते याद करके रिश्तेदारों को कोसना, वो रिश्तेदारों के सामने अपने बच्चो की शेखी बघारना, वो शब्दों की मिठास में कसे गए ज़हरीले तंज. बच्चे ऐसे मौको पर अहं की तृप्ति का साधन बन जाते है. बच्चे क्या जाने की उनके माध्यम से दोनों ही पक्ष अपने अहं की लड़ाई लड़ते है. मुझे याद है कैसी मेरी कविताये मेरी माँ रिश्तेदारों को दिखाया करती थी. कैसे आपका अदना सा सर्टिफिकेट नोबेल पुरुस्कार जितना अहम हो जाता है. उस प्रदर्शन में वास्तव में खुद को श्रेष्ठ दिखाने की कुंठा छुपी हुई होती है.
पर रिश्तेदार क्या मूक दर्शक है. कदापि नहीं. वो तो कुंठा, जलन, शिकायतों और अहं का बस्ता अपने साथ लेकर आता है और शब्दों में भरकर इन कुंठाओ को घर में इधर उधर बिखरा जाता है और हम जीवन पर्यंत उन टुकडो को समेटते फिरते है. वो एक ही सवाल घर के अलग अलग सदस्यों से अलग अलग समय पर हौले से पूछते है ताकि कोई विसंगति पाए जाने पर उसे चुगली के रूप में प्रयोग कर सके. जहाँ कु भावना न हो वहां भावनाएं भड़काने वाले और जहाँ कटुता पहले से हो वहां सांत्वना का पर्दा लगाकर आनंद लेने वाले मनुष्य को “रिश्तेदार” कहते है.
इन रिश्तेदारों के इतर कुछ ऐसे भी रिश्तेदार होते है जिनका होना न होना बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता. ऐसे लोग जिनकी याद और जिनसे मुलाकात सिर्फ शादी समारोह में होती है. और इनमे से कुछ ऐसे भी होते है जिनका अस्तित्व में होना ही शादी समारोहों से पता चलता है. ४ साल पहले मेरी बहिन की शादी हुई थी. जब मेहमानों की लिस्ट बनायीं गयी तो देखकर अचरज हुआ कि हमारे तथाकथित रिश्तेदारों में कई ऐसे लोग शामिल थे जिनका हमसे तो छोडिये हमारे माता पिता से भी कोई सरोकार नहीं था. तो क्या रिश्तेदार एक सामाजिक मजबूरी है? गाँव जाओ तो पूरे गाँव के एक एक व्यक्ति से आपका कोई न कोई रिश्ता निकल ही आता है. ये रिश्ते बस नाम के होते है. ऐसे लोग तभी काम आते है जब या तो आप गाँव के बाशिंदे हो या आप इनके लिए कैंटीन का सामान और शराब की बोतले लेकर आये. इन रिश्तो में कोई सच्चाई ढूँढना बेकार है. गाँव के रिश्ते चाहे तो बहुत सरल और ज्यादा करीब लगे पर पास जाकर देखो तो असलियत दिख जाती है. मेरे गाँव में कोई सामाजिक त्योहार होता है तो खाना बाँटने का काम केवल एक ही परिवार करता है. जानते है क्यूँ? क्योंकि वही एकमात्र ऐसा परिवार है जिसको गाँव के किसी आदमी ने “घात”(बद्दुआ या शाप) नहीं लगाया. यहाँ किसी कोई दुःख, बीमारी, क्लेश होता है, गाय दूध नहीं देती, लड़की की शादी नहीं होती तो हमारे गाँव के लोग सबसे पहले तांत्रिक के पास जाते है, पूजा कराते है, ये जानने के लिए की कहीं किसी की बुरी नज़र तो नहीं लगी. किस काम के ऐसे रिश्तेदार जिनसे आप डरते भी है, जलते भी है. और उनके साथ रहना, उनको अपना कहना आपकी मजबूरी है. इस बात से मुझे आनंद फिल्म का डायलॉग याद आ जाता है- “काश इंसान जैसे अपने दोस्त चुनता है, वैसे अपने रिश्तेदार भी चुन सकता”
“सुख में तेरे साथ रहेंगे
दुःख में सब मुख मोडेंगे
दुनिया वाले तेरे बनकर
तेरा ही दिल तोड़ेंगे
देते है भगवान् को धोखा
इंसान को क्या छोड़ेंगे”
ये शुरुआत वाले गीत का अंतरा है. सच भी है, जितने लोग आपके साथ जाम छलकाने को तैयार रहते है उसका एक छोटा सा अंश भी मदद के समय काम नहीं आते. शादी एक ऐसा बंधन है जहाँ आप रिश्ता एक के साथ बनाते है और सैकड़ो लोग आपको मुफ्त में “रिश्तेदार” मिलते है. ऐसे लोग नाम से भले ही “रिश्ते”-दार हो परन्तु वास्तव में यहाँ रिश्ता कुछ नहीं होता, होती है बस औपचारिकता.
हमारे घर जो रिश्तेदार पधारे है, वो मेरे सामने ही बैठे है और मैं पूरा यत्न कर रहा हूँ की उनको न दिखे की मैं क्या लिख रहा हूँ. उन्होंने पूछा तो मैंने बताया कि मैं कॉलेज का प्रोजेक्ट बना रहा हूँ. देखो स्वांग करना मुझे भी आ गया!!…..
शायद अब मैं बड़ा हो गया हूँ.
Achha post hai lekin mujjhe surf rsteydar air nateydar mein anter kya hai
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mool roop se dono shabdo me koi antar nahi hai. rishta-naata dono shabd paryayvachi hai. bahut gehrai me jaana chaho to kuch antar hai par aam chalan me dono shabd saman hai
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बहुत ही प्रभावशाली अभिव्यक्ति
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