लेखक:

अनुराग गौतम

शोधार्थी (इतिहास विभाग)

दिल्ली विश्विद्यालय

पूर्वांचल के क्षेत्र का कालीन व अन्य कपड़ा बिनाई में मध्यकाल से मत्वपूर्ण स्थान रहा है। मध्यकाल में कबीर जैसे भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण स्तंभ संत बुनाई के कार्य मे लग कर दोहे रचना व गायन का कार्य करते थे। कबीर ने भक्ति आंदोनल के महत्वपूर्ण स्तंभ हो जाने के बाद भी कपड़ा बुनाई का काम जारी रखा व इसी से अपने व अपने परिवार का जीविकोपार्जन हेतु मूलभूत संसाधन पाते रहे थे। कबीर ने धर्म को कभी अपने रोजी रोजगार का साधन नही बनाया था। अपने इन्ही सिद्धांतों के कारण कबीर व उनका पेशा आज भी समाज मे चर्चा का विषय है। पूर्वांचल के अधिकतर गांवों में आज भी बुनाई का कार्य होते हुए आप आराम से देख सकते है।

बनारस से लगभग 50 किलोमीटर पश्चिम में व गंगा नदी के लगभग 3 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित औराई ( जिला: भदोही) कालीन व्यापार के लिए जाना जाता था। यहाँ बनने वाली कालीन का कार्य अनेक स्तरों में होता है जिसमे रुये, धागा बीकानेर व पानीपत से आता है बुनाई व रंगाई का काम औराई (भदोही) में ही होता है व यहाँ से बना माल विदेशों में सप्लाई होता है। किंतु पिछले वर्षों में इस व्यापार में काफी गिरावट देखने को मिली है जिसमे यह व्यापार पिछले वर्षों के मुक़ाबले 25% से भी कम हो गया है। जिससे कालीन व्यापार में लगे कारीगरों व व्यापारियों ने दूसरे व्यापार की ओर मुंह मोड़ लिया है।

कालीन बुनाई कार्य मे कारीगरों, ठेकेदारों व मालिकों के कई स्तर है। कालीन बिनाई के व्यापार में सबसे ऊपर थोक व्यापारी है जो माल को विदेशों में सप्लाई करते है व शहरों में बड़ी दुकानों से माल बेचते है। उनके बाद उन ठेकेदारों का नंबर आता है जो स्थानीय मालिकों से तैयार माल उठाते है व कालीन व्यापार के शहरी केंद्रों तक पहुचातें है। इसके बाद स्थानीय साझेदारों की श्रखंला है। स्थानीय साझेदारों में कारखाना मालिक आते है जो ठेकेदारों से माल का ऑर्डर लेते है और उन्हें तैयार माल उपलब्ध कराते है हम फील्ड वर्क के दौरान जिस मकान में रुके थे उसके मालिक अपने घर की ऊपरी मंजिल में पहले कालीन बुनाई का कारखाना चलते थे किंतु व्यापार में मांग में आई गिरावट के चलते उन्होंने इस व्यापार को कम कर दूसरा काम शुरू किया है। कालीन व्यापार की पूरी श्रखंला में उक्त मकान मालिक ‘स्थानीय मालिक’ की कड़ी को पूरा करते है। पूर्व में कालीन व्यापार में लगे बड़े मालिकों ने इससे दूरी बना कर अपनी हैसियत के मुताबिक दूसरे व्यापार खोल लिए है। किन्तु वास्तविक समस्या इस पूरी श्रखंला के सबसे निचले पायदान पर स्थित दिहाड़ी बेसिस पर बुनाई व रंगाई का काम करने वाले कारीगरों की है जो इस व्यापार के बंद होने से बेरोजगार हो गये है। इसके साथ ही इस उद्द्योग में कालीन की डिजाइन बनाने वाले, रंग बनाने वाले, रेशों को धागे का रूप देकर रंगने वाले आदि अनेक स्तर पर कारीगरों की समूह लगा है।

कालीन व्यापार में बुनाई  का काम करने वाले कारीगर हांथो में हुनर होने के बाद भी दूसरे काम करने को मजबूर है और कालीन व्यापार में जो कारीगर अभी भी लगे है उनकी स्थिती और भी खराब है। औराई (भदोही) में बुनाई के काम मे लगे कारीगर पप्पू और धर्मेंद्र ने बताया कि उन्हें हुनर के मुकाबले मेहताना कम मिलता है। कालीन का एक सेट तैयार करने पर 350 रुपये मिलते है कालीन का एक सेट एक दिन में तैयार होता है। कालीन बिनाई का कार्य उन्हें पूरे महीने का रोज़गार उपलब्ध नही करा पाता है, जिसके कारण उन्हें आय के दूसरे साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है जो काम की रचनात्मकता को प्रभावित करता है। कालीन बुनाई में लगा कारीगर महीने में 5 से 6 हज़ार रुपए ही कमा पाते है इतना खर्च पूरे महीने परिवार चलाने के लिए नाकाफ़ी होता है जिसके लिए वे दूसरे के खेत लेकर उस पर खेती करते है।  कारीगर पप्पू ने बताया कि कालीन व्यापार के पतन का अंदाजा इसी बात से लगा सकते है कि पहले एक कारखाने से लगभग 80 कारीगर काम करते थे वही अब इसमें सिर्फ 4 कारीगर काम करते है जो पहले के मुकाबले सिर्फ 5%  है। इन कारीगरों के लिए समस्या तब उत्पन्न हो जाती है जब वे बीमार होते है और काम नही कर पाते जिससे पैसे आने बंद हो जाते और दवाएं व घर के खर्चे बढ़ते रहते है ऐसे में उन्हें कारखाना मालिक की ओर से कोई आकस्मिक सुविधा मुहैया नही कराई जाती है।

कारीगरों की समस्याएं कार्य स्थल को लेकर भी है बुनाई के काम का मशीनीकरण होने के कारण कारीगरों को मशीन हांथ में लेकर चलानी होती जो बिजली चलित है। कार्यस्थल में सुरक्षा के मानक न होने की वजह से कारीगरों को बिजली के करंट भी लग जाते है जो किसी बड़ी समस्या का रूप ले सकते है। बुनाई के काम मे घागे के सीधे संपर्क में आने पर रेशे उड़ते रहते है जिसके उचित प्रबन्ध न होने के कारण सांस के साथ कारीगरों के शरीर के अंदर चले जाते है जिससे दीर्ध काल में स्वांश व फेफड़े संबंधी रोग होने की संभावना ज्यादा रहती है।

कालीन व्यापार में आई गिरावट सामाजिक, आर्थिक व सास्कृतिक तीनो स्तरों पर प्रभावित करती है। भारत की ओर से कालीन व्यापार में जो स्थान खाली हुआ है उसको चीन के कारोबरियो ने भर दिया है जिससे भारत को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा  है तथा कभी पूर्वांचल की चमक रही कालीन व्यापार की ये चमक अब फीकी पड़ने लगी है। कालीन कारोबार पूर्वांचल में बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराता है इसके पतन से लोगों में बेरोजगारी बढ़ जाएगी और इतनी बड़ी संख्या में लोगो को रोज़गार देने के सरकारों के पास कोई उपाय नही है। इसलिये सरकारों को इस डूबते कारोबार को जिंदा करने के लिए प्रोत्साहनवादी नीतियों को अपनाना चाहिये जिससे कालीन कारोबार से लगे लोगों को राहत मिले व देश आर्थिक तरक्की करे।