• अनुराग गौतम

इश्क़ इलाज़ नही मर्ज़ है,
तन्हाई नसीबों का दर्द है,

आती है रंग-ओ-बू,
आलम में इसके साथ,

खिलते है बहारों में गुल,
इकरार-ए-इश्क़ के बाद,

खुश्बू है इसकी ऐसी,
जैसे मौसम हो बारिश के बाद,

ताशीर है इसकी ऐसी,
जैसे जाड़े की सर्द रात,

जब साथ हो उनका
तो नदी का कलकल लगे गीत,

खिल उठे गुल,
गुँजन करे भौरे,
जब साथ हो मनमीत,

खुशियां भी बेमानी लगे
उनकी साथ के बिना

वादी-ए-जन्नत भी फीकी लगे,
उनके साथ के बिना,

इश्क़ इलाज़ नही मर्ज़ है
तन्हाई नशीबों का दर्द है